करवा चौथ का पर्व
करवा चौथ भारतीय सुहागिनों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सफलता और अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। यह त्योहार पति-पत्नी के बीच प्रेम, त्याग और विश्वास के पवित्र बंधन का प्रतीक है। यह ऐप आपको इस पवित्र त्योहार से जुड़ी हर जानकारी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
करवा चौथ 2025: तिथि और समय
तिथि
17 अक्टूबर 2025
शुक्रवार
पूजा मुहूर्त
शाम 05:53 - शाम 07:08
अवधि: 1 घंटा 15 मिनट
चंद्रोदय का समय
रात 08:16
(समय शहर के अनुसार बदल सकता है)
त्योहार का इतिहास और महत्व
करवा चौथ की परंपरा के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं, जिन्हें आप नीचे टैब पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
रानी वीरवती की कथा
सबसे प्रसिद्ध कथा रानी वीरवती की है। वह सात भाइयों की इकलौती और लाडली बहन थीं। शादी के बाद जब उन्होंने अपना पहला करवा चौथ का व्रत रखा, तो भूख-प्यास से उनका हाल बेहाल हो गया। अपने बहन की यह हालत देखकर भाइयों ने एक पेड़ के पीछे मशाल जलाकर और छलनी रखकर नकली चांद बना दिया। वीरवती ने उसे असली चांद समझकर व्रत खोल लिया। जैसे ही उन्होंने खाना खाया, उनके पति के निधन का समाचार मिला। उन्होंने विलाप किया और फिर पूरी श्रद्धा से अगले साल व्रत रखा, जिससे उनके पति को पुनः जीवनदान मिला।
व्रत की दिनचर्या
यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर चंद्रोदय तक चलता है। यह एक निर्जला व्रत है जिसमें अन्न और जल का त्याग किया जाता है। दिनभर की प्रमुख क्रियाएं इस प्रकार हैं।
सरगी (सूर्योदय से पहले)
सास अपनी बहू को सरगी देती है, जिसमें मिठाइयां, फल और सूखे मेवे होते हैं। सूर्योदय से पहले इसे खाकर व्रत की शुरुआत होती है।
संकल्प लेना
सरगी के बाद स्नान करके महिलाएं देवी-देवताओं का ध्यान करती हैं और निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
दिनभर का व्रत
महिलाएं दिनभर बिना कुछ खाए-पिए रहती हैं। वे भजन-कीर्तन करती हैं और शाम की पूजा की तैयारी करती हैं।
शाम की पूजा
शाम को सभी महिलाएं एक साथ मिलकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं और पूजा करती हैं।
चंद्रमा को अर्घ्य और व्रत खोलना
चंद्रमा निकलने पर महिलाएं छलनी से चांद और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं।
पूजा थाली की आवश्यक सामग्री
करवा चौथ की पूजा में थाली का विशेष महत्व है। इसमें रखी हर वस्तु का अपना एक प्रतीक और महत्व होता है। किसी भी वस्तु पर क्लिक करके उसके बारे में और जानें।
करवा
छलनी
दीया
सिंदूर/रोली
मिठाई
जल का लोटा
अगरबत्ती
फल
चावल
सामग्री का महत्व
छलनी का उपयोग चंद्रमा और फिर पति का चेहरा देखने के लिए किया जाता है। यह पति-पत्नी के रिश्ते में पवित्रता और सम्मान का प्रतीक है।
संपूर्ण पूजा विधि
1. पूजा स्थल की तैयारी
शाम के समय, घर में पूजा के लिए एक साफ स्थान चुनें। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर करवा चौथ का कैलेंडर या शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें।
2. करवा की स्थापना
पूजा की थाली तैयार करें और मिट्टी के करवे में जल भरकर चौकी पर रखें। करवे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं और कलावा बांधें।
3. कथा का वाचन
परिवार की या पड़ोस की सभी महिलाएं एक साथ इकट्ठा हों। एक वरिष्ठ महिला करवा चौथ की कथा सुनाती हैं और बाकी सभी महिलाएं ध्यान से सुनती हैं।
4. थाली घुमाना
कथा समाप्त होने के बाद, सभी महिलाएं अपनी-अपनी पूजा की थाली एक-दूसरे के साथ घुमाती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
5. चंद्रमा की पूजा
चंद्रमा निकलने पर, छलनी से पहले चांद को और फिर पति को देखें। चंद्रमा को करवे के जल से अर्घ्य दें और अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करें।
6. व्रत का समापन
पूजा के बाद, पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत को पूरा करवाते हैं। इसके बाद महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं।
सरगी और पारंपरिक भोजन
सरगी: व्रत की शुरुआत
सरगी वह भोजन है जो सूर्योदय से पहले खाया जाता है। यह सास अपनी बहू को आशीर्वाद के रूप में देती है। इसका उद्देश्य दिनभर ऊर्जावान बनाए रखना है।
- फेनी या दूध से बनी सेवइयां: ऊर्जा के लिए।
- फल: शरीर में पानी की कमी को रोकने के लिए।
- मिठाई: दिन की मीठी शुरुआत के लिए।
- सूखे मेवे: पोषण और ताकत के लिए।
व्रत खोलने का भोजन
चांद देखने और पूजा करने के बाद, एक सात्विक और स्वादिष्ट भोजन के साथ व्रत खोला जाता है।
- पूरी और आलू की सब्जी: एक पारंपरिक और पसंदीदा व्यंजन।
- पनीर की सब्जी: भोजन को और खास बनाने के लिए।
- दही भल्ले: व्रत के बाद ठंडक देने के लिए।
- हलवा या खीर: मीठे के बिना कोई भी त्योहार अधूरा है।